अभी भी पंजाब में लड़कियों के साथ भेद-भाव बड़े स्तर पर जारी
रोशन
पंजाब भारत के उन राज्यों में से एक है जहां औरत को पैर की जूती, चूल्हे-चौंके का काम संभालने वाली एक गुलाम समझने की जमींदारी वाली मानसिकता काफी पसरी हुई है। यह तो अकसर ही कहा जाता है कि पंजाब में हीर गाई भी जाती है और मारी भी जाती है, पर यहां हीर पैदा होने से लेकर ज़िंदगी के हर कदम पर भेद-भाव का शिकार होती हैं। भले पिछले दशकों में हुए पूँजीवादी विकास के साथ पंजाब में औरतों को घर से बाहर निकल कर पढ़ने, काम-काज करने के मौके मिले हैं पर इसके बावजूद भी औरतों के साथ यहां बड़े स्तर पर भेद-भाव मौजूद है। लड़कियों को पढ़ाने और नौकरी करने देने का कारण अभी भी औरतों को सम्मान या बराबरी का दर्जा देना नहीं ब्लकि अभी भी इसका एक बड़ा कारण यही है कि विवाह के रुप में होते सौदों में उसकी पढ़ाई, रोज़गार के साथ उसका अच्छा सौदा हो सके। लड़कियों के पैदा होने, पालन-पोषण से लेकर उनके स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार और विवाह आदि सब मामलों में राज्य की हालत अभी भी तरसयोग्य है। लड़की पैदा होने पर पंजाब में अभी भी लोगों के मुंह सूज जाते हैं और मातम का माहौल बन जाता है। लड़कियों को पैदा होने से पहले ही मारना अभी भी मौजूद है। परिवार में होते भेद-भाव के साथ बचपन से ही लड़कियों को दबाना और लड़के को लाडला, मनमर्ज़ी करने वाला बना कर पाला जाता है, बाद में ये लड़कियां बड़ी होकर अपने साथ होते भेद-भाव खिलाफ बोलने लायक नहीं रह जाती और लाडले लड़कों के लिए औरतें सारी ज़िन्दगी खिलौना या सेवा करने वाली गुलाम बनी रहती हैं।
किसी रोज़गार पर लगी औरतों को भी अनेकों तरह के भेद-भाव का सामना करना पड़ता है। औरतों को कम मौके देना, कम तनख्वाह देना, मानसिक तौर पर परेशान किए जाना और छेड़छाड़ आदि लगभग हर नौकरी करने वाली औरत के हिस्से आता है। इसके साथ ही नौकरी करने के साथ साथ घर के काम भी औरत को ही करने पड़ते हैं और उस पर दुगुना कामों का बोझ आ जाता है। सुबह सफाई, रसोई और बच्चों को तैयार करने के काम करने के बाद ही औरत नौकरी पर जाती है। जब शाम को पति-पत्नी कामों से वापिस आते हैं तो थका हुआ पति सोफे पर पैर पसार कर पानी का गिलास भी मांगता है और औरत घर के बाकी कामों में वयस्त हो जाती है।
जुलाई महीने पंजाब बारे सैंपल रजिस्ट्रेशन सरवेक्षण के जारी हुए आंकड़े राज्य में लड़कियों के साथ बड़े स्तर पर होते भेद-भाव की गवाही भरते हैं। इस सर्वेक्षण अनुसार पंजाब की हालत भारत के ज़्यादातर राज्यों से बुरी है। पंजाब ना सिर्फ मुकाबले में विकसित राज्यों से पीछे है ब्लकि उत्तर-प्रदेश, बिहार जैसे पिछड़े राज्यों से भी पंजाब का बुरा हाल है। इन में से कुछ अहम आंकड़े इस तरह हैं:-
- 5 वर्ष से कम उमर में बच्चों की मौत की दर में लड़के से लड़की की मौत दर में 10 अंकों का फर्क है, जबकि भारत स्तर पर यह फर्क 2 अंकों का है। पंजाब में हर 27 में से एक लड़की और हर 38 मेंसे एक लड़का 5 वर्ष से कम उमर में मर जाता है।
- मानवीय विकास सूचक अंक में पंजाब का 4 स्थान है पर लिंग आधारित विकास सूचक अंक में इसका स्थान 16 वां है।
- भारत में प्रति औरत बच्चे पैदा करने की दर 2.1 है, पर पंजाब में यह 1.7 है। यह लगता है कि पंजाब में कम बच्चे पैदा करके परिवार नियोजन किया जाता है, पर यह परिवार नियोजन असल में लिंग नियोजन है। पंजाब में 2001 में लिंग अनुपात 874/1000 था और बच्चों 0-6 वर्ष में यह 798/1000 था। 2011 में भले कुछ सुधार आया है और लिंग अनुपात 893/ 1000 है और बच्चों में यह 846/1000 है। पर अभी भी यह देश स्तर की दर 940/1000 से भी कम है।
पंजाब सरकार के आंकड़े भी कुछ इस तरह की ही तस्वीर ब्यान करते हैं।
- 38 फीसदी औरतों में खून की कमी से पीड़ित हैं।
- 2011 की जनगणना अनुसार काम करने वाली औरतों की गिनती सिर्फ 12 फीसदी है।
3.राज्य में औरतों की साक्षरता दर 70.7 फीसदी है जबकि मर्दो के लिए यह 80.4 फीसदी है। होशियारपुर मे औरतों की साक्षरता दर सब से अधिक 80.3 फीसदी है और मानसा में सब से कम 55.7 है।
- पंजाब में सरकारी नौकरीयां हैं 2,71,000 हैं पर इनमें से औरतें सिर्फ 25.4 फीसदी हैं।
- पंजाब विधानसभा की 117 सीटों में से सिर्फ 14 औरतों के पास हैं।
- पंचायती स्तर पर भी 28 फीसदी औरतें सदस्य पंचायत और 29.8 फीसदी पंचायत में औरतों की यह भागीदारीनाम की ही है, ज़्यादातर मामलों में औरतों के पति ही उनकी पदवी संभालते हैं।
- औरतों के खिलाफ होते ज़ुर्मों में 42.19 फीसदी मामले दहेज कारण कत्ल, 17.93 फीसदी अगवा और 13.67 फीसदी बलात्कार के हैं। पर छेड़छाड़ और बलात्कार के ज़्यादातर मामले दर्ज नहीं होते।
पंजाब और केन्द्र सरकार की ओर से कन्या जागृति ज्योति सकी, रक्षा योजना, धनलक्ष्मी योजना, बीबी नानकी लाडली बेटी कल्याण योजना, शगुन स्कीम जैसी अनेकों योजनाएं चला जा रही हैं जो सफेद हाथी साबित हो रही हैं। इनमें से बहुत सिर्फ दिखावा बनकर रह चुकी हैं, कईयों के बारे आम लोगों को कोई जानकारी ही नहीं है और कईयों के तहत लड़कियों को जरुरत की सहायता पहुंचती ही नहीं ब्लकि सारा धन नौकरशाही के पेट में चला जाता है। ब्लकि सही कहना हो तो पंजाब में लड़कियों के यह बुरी हालत लीडरों, नौकरशाहों के लिए दावत का ही काम कर रही है जिनके नाम पर चलती योजनाओं के सिर उनके राजनीति चलती है, घपलेबाज़ी होती है।
पंजाब की इस बोलती तस्वीर से स्पष्ट है कि पंजाब में औरत विरोधी मानसिकता और भेद-भाव खिलाफ अभी तक एक लम्बी लड़ाई की जरुरत है। यह काम ना तो मौजूदा सरकारें करेंगी और ना ही उनके बस का ही है। इसके लिए औरतों को ही अपनी मज़बूत लहर बनानी पड़ेगी और इसको मेहनती लोगों की मुक्ति की लहर के साथ जोड़ना पड़ेगा।
मज़दूर बिगुल, अगस्त-सितम्बर 2016
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